गगन मंडल मे हंसा डोले
सोऽहं सोऽहं पंख पखारे
इक ओंकार की सब धुनें हैं
जगत के बन्धन तोड़ चला मैं ... गगन मंडल मे हंसा डोले
त्रिये नैन, अब भेद उडे हैं
तोड़ के जनम मरण के ताले
ब्रह्मानंद सहोदर सुनके
अनहद अनहद वाणी बोले ...गगन मंडल मे हंसा डोले
--By Shivraaj
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