Saturday, April 23, 2005

'सुख का गोरी' sukh kaa gori

what i like about salim ahemad 'jakhmi' is his robert forst like
style of saying complex things in simple words.
his language very simple,neither high flying hindi or urdu

presenting his very famous composition 'सुख का गोरी '
read the later satnzaas very carefully.


सुख का गोरी नाम न लेना
दुख हि दुख है गाँव मे,
प्रीत का काँटा मन मे चुभेगा
खेत का काँटा पाँव मे १

देख मुसाफ़िर मित्र खडे हैँ
छतरी ताने गावोँ मे,
पीपल बरगद नीम बुलायेँ
हाथ हिला कर छाँव मे २

माटी के हम दीप जरा से
ज्योत हमारी कितनी देर,
घात मे बाहर घोर अँधेरे
घुस आये कुटियाओँ मे ३

साँस खटकती फाँस के जैसी
पल भर मन को चैन नहीँ ,
नीरस नीरस जीवन सारा
आग लगे आशाओँ मे ४

कृष्ण की पूजा श्याम कि भक्ति
मुरली-धर की मतवाली ,
राधा जैसे भाग हैँ किसके
बिन ब्याही कन्याओँ मे ५

इस युग के बेढब लोगोँ से
क्या ढब की बत करे कोई,
चतुराइ से चिन्ता मे फसेँ हैँ
बुद्धि से बाधाओँ मे ६

तन का तिनका जीवन तट पर
कबतक 'जख्मी' ठहरेगा
लहर लहर मे छीना झपटी
होड लगी घटनाओँ मे ७

-वसुधा से साभार

3 comments:

Gulgula said...

hi Ashu:

I like the emotions in last lines. However, they lack the metric quality. The dynamic tune from first few couplets is just not working towards the end.

Nice posts. Keep them up.

Best
B

I said...

u abslolutwly right the lack of meter is very conspicious
nonetheless the compostion is wonderfull
some lines are very touching like radha jaise bhag hain. kiske..

and tan ka tinka etc..

-ashu

Anonymous said...

I want not agree on it. I think nice post. Expressly the appellation attracted me to study the intact story.