maithli sahran gupt was the ambassador of khadi boli.
he chose khadi boli for his creations as against the popular
braj bhasha.
his famous compostions like 'nar ho na niraah karo man ko'
and 'mujhe phool mat maro' took nation by storm in those days
i present one of my much loved and very
poignant poem.
read it carefully and if posssible over and over again
to fathom the emotive and poetic depths depicted.
दोनो ओर प्रेम पलता है -
दोनो ओर प्रेम पलता है
सखि पतँग भी जलता है
हा दीपक भी जलता है
सीस हिला कर दीपक कह्ता
बन्धु वृथा हि तू क्योँ दह्ता है
पर पतँग पड के ही रह्ता
कितनी विव्हलता है
-दोनो ओर प्रेम पलता है
बचकर हाय पतँग मरे क्या?
प्रणय छोड कर प्राण धरे क्या?
जले नहीँ तो मरा करेँ क्या ?
क्या ये असफ़लता है ?
--दोनो ओर प्रेम पलता है
कह्ता है पतँग मन मारे
तुम महान पर मैँ लघु प्यारे
क्या न मरण भी हाथ हमारे?
शरण किसे छलता है
--दोनो ओर प्रेम पलता है
दीपक के जलने मे आली
फिर भी है जीवन की लाली
किन्तु पतँग कि भाग्य लिपी काली
किसका वश चलता है ?
--दोनो ओर प्रेम पलता है
जगती वणिग्वृत्ति है रखती
उसे चाह्ती जिसेसे चखती
काम नही परिणाम निरखती
मुझे ही खलता है
दोनो ओर प्रेम पलता है
सखि पतँग भी जलता है
हा दीपक भी जलता है
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