Saturday, May 24, 2008

Kabir Bhajan

Who can say this better than Kabir :)

हम हैं इश्क मस्ताना
की हमको होशियारी क्या!
रहें आजाद इस जग में
हमको दुनिया से यारी क्या !


जो बिछुड़े हैं, पियारे से
भटकते, डर बदर फिरते
हमारा यार है हममे
तो हमको इतेजारी क्या ?

ना पल बिछुड़े पीया हमसे
ना हम बिछुड़े पियारे से
उन्ही से नेह लागा है
हमको बेकरारी क्या !!


कबीरा इश्क का माता
दुविधा दूर कर दिल से
जो चलना राह नाज़ुक है
हमें सर बोझ भारी क्या!

Kind regards and thanks to kabaadkahana people for putting this up !

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