Sunday, February 05, 2006

neerah again

सपने झरे फूल से
मीत चुभे शूल से
लुट गये सिंगार सभी
बाग के बबूल से
और हम खडे खडे
बहार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
गुबार देखते रहे

नींद भी खुली न थी
कि है धूप ढल गयी
पांव जब तलक उठे
की जिन्दगी फिसल गयी
पात पात झर गये
शाख शाख जल गयी
गीत अश्क़ बन गये
स्वप्न हो दफ़न गये
साथ के सभी दिये
धुआं पहन पहन गये

और हम झुके झुके
मोड पर रुके रुके
उम्र के चढाव का
उतार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
गुबार देखते रहे


क्या शबाब था की
फूल-फूल प्यार कर उठा
क्या कमाल था की देख
आइना सहर उठा
इस तरफ़ जमीं
और आस्मां उधर उठा

थम कर जिगर उठा
कि जो मिला नजर उठा
एक दिन मगर यहां
ऐसी कुछ हवा चली
लुट गयी कली कली
घुट गयी गली गली
और हम लुटे लुटे
वक्त् से पिटे पिटे
साज की शराब का
खुमार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
गुबार देखते रहे

हाथ थे मिले की ज़ुल्फ़
चांद की संवार दूं
होंठ थे खिले के हर
बहार को पुकार दूं
दर्द था दिया गया की
हर दुखी को प्यार दूं
और सांस यूं के स्वर्ग
भूमी पे उतार दूं

हो सका ना कुछ मगर
शाम बन गयी सहर
वो उठी लहर की ढै
गये किले बिखर बिखर
और हम डरे डरे
नीर नैन मे भरे
ओढ कर कफ़न पडे
मजार देखते रहे
कारवाँ गुज़र गया
गुबार देखते रहे












-----no tranlation request please ---even my best will be grotesque----
and the remaning part coming soon

3 comments:

Anonymous said...

Hi Ashutosh,

Sorry about leaving a comment here but I couldn't find an email address on the blog to get in touch with you.

Recently I blogged about the Hindi version of 'Stopping by Woods on a Snowy Evening'.

Rahul commented that you could maybe help me out. So please take a look at the poem and let me know if you know or can find what I am looking for.

Thanks. Have a nice day.

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Thanks. Have a nice day.

Anonymous said...

sir ji which font have u used
i m not able 2 see in I.E.

aapka parwana ;))