Friday, December 08, 2006

mangal karani

मंगल करनि कलि मल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की ॥
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की ॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी ॥
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी ॥

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