Tuesday, May 03, 2005

excerpt from kamayani

For some sweet, endearing moments
read kaamyaani, i have given an excerpt of the poem.
kamaayani is considered the greatest creative height after tulsi's ramcharitmanas
in Hindi litreature

haappy reading :-)

"हाँ, ठीक, परन्तु बताओगी मेरे जीवन का पथ क्या है?
इस निविड़ निशा में संसृति की आलोकमयी रेखा क्या है?
यह आज समझ तो पाई हूँ मैं दुर्बलता में नारी हूँ,
अवयव की सुन्दर कोमलता लेकर मैं सबसे हारी हूँ।
पर मन भी क्यों इतना ढीला अपने ही होता जाता है,
घनश्याम-खंड-सी आँखों में क्यों सहसा जल भर आता है?
सर्वस्व-समर्पण करने की विश्वास-महा-तरु-छाया में,
चुपचाप पड़ी रहने की क्यों ममता जगती हैं माया में?
छायापथ में तारक-द्युति सी झिलमिल करने की मधु-लीला,
अभिनय करती क्यों इस मन में कोमल निरीहता श्रम-शीला?
निस्संबल होकर तिरती हूँ इस मानस की गहराई में,
चाहती नहीं जागरण कभी सपने की इस सुघराई में।
नारी जीवन की चित्र यही क्या? विकल रंग भर देती हो,
अस्फुट रेखा की सीमा में आकार कला को देती हो।
रुकती हूँ और ठहरती हूँ पर सोच-विचार न कर सकती,
पगली-सी कोई अंतर में बैठी जैसे अनुदित बकती।
मैं जभी तोलने का करती उपचार स्वयं तुल जाती हूँ,
भुजलता फँसा कर नर-तरु से झूले-सी झोंके खाती हूँ।
इस अर्पण में कुछ और नहीं केवल उत्सर्ग छलकता है,
मैं दे दूँ और न फिर कुछ लूँ, इतना ही सरल झलकता है।
"क्या कहती हो ठहरो नारी! संकल्प-अश्रु जल से अपने -
तुम दान कर चुकी पहले ही जीवन के सोने-से सपने।
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में,
पीयूष-स्रोत बहा करो जीवन के सुंदर समतल में।
देवों की विजय, दानवों की हारों का होता युद्ध रहा,
संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित रह नित्य-विरुद्ध रहा।
आँसू से भींगे अंचल पर मन का सब कुछ रखना होगा -
तुमको अपनी स्मित रेखा से यह संधिपत्र लिखना होगा।"
- जयशंकर प्रसाद

2 comments:

Anonymous said...

gurudev,
ab ye hi baki tha
ye hi kar lo.
ap kya college mein hain?

TheQuark said...

Ashu can you specify what fonts have you used and where can i find the font files. My browser (firefox) cannot read the hind fonts.
Patrick