बहुत पुराना है ये प्रेम
पर नया भी, और नया रहेगा
कविता ने सदा संगीत को चाहा
कभी कभी उसे वो मिला भी
जब जब वो मिले , ऐसे मिले
की खो बैठे अपना स्वरुप
और सृजन हुआ गीत का
पर ये बात यहाँ ख़तम नहीं हुई
गीत भी चाहता था कुछ,
एक उच्च अभिव्यक्ति
की उसे भी गाये, कोई योगेश्वर
और वो गीता कहलाया जाए
परन्तु शायद योगेश्वर कम गाते हैं
इसीलिए, शायद अर्जुन विषाद
अर्जुन विषाद ही रह जाता है
सांख्य या मोक्ष संन्यास तक
पहुँच नहीं पाता है
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