सुने री मैंने निर्बल के बल राम।
पिछली साख भरूं संतन की आड़े संवारे काम।
जबलग गज अपनो बरत्यो नेक सरो नहिं काम।
निर्बल ह्रै बल राम पुकार्यो आये आधे नाम।।
द्रु पद-सुता निर्बल भई ता दिन गहलाये निज धाम।
दु:शासन की भुजा थकित भइ वसनरूप भये श्याम।।
अप-बल, तप-बल और बाहु-बल चौथा है बल दाम।
सूर किशोर कृपा से सब बल हारे को हरिनाम।।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment