कुछ भी ना बचा कहने को हर बात हो गयी
आओ कहीं शराब पीयें रात हो गयी
सूरज को चोंच में लिये मुर्गा खडा रहा
खिड्की के पर्दे खीच दिये रात हो गयी
रस्ते में वो मिला था मैं बच कर गुज़र गया
उसकी फटी कमीज़ मेरे साथ हो गयी
मुद्दत से थी तलाश मिलें , और मिल लिये
दो पल रुके, सलाम हुआ, बात हो गयी
नकशा उठा के कोइ नया शहर ढुंडिये
इस शहर मे तो सबसे मुलाकात हो गयी
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1 comment:
nice...
ye kisne likhi hai?is it urs??
even i indulge in writing a bit of shayari once in a while depending on the mood,
check the latest post on my blog if interested...
and lastly, ye upar wala comment delete karo aur spam se bachne ke liye word verification on karo!
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